Monday, 14 September 2015

भारत के 10 परम वीर चक्र विजेताओं की वीर गाथाएं जिन पर हर भारतीय को गर्व है


भारत के 10 परम वीर चक्र विजेताओं की वीर गाथाएं जिन पर हर भारतीय को गर्व है

हमें आरामदेह ज़िंदगी की कुछ ऐसी आदत हो गई है कि हम अपनी ज़िंदगी के इतर देखना ही नहीं चाहते. हमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि, जिस समय हम अपने एयरकंडीशनर के तापमान को अपनी सुविधानुसार घटा-बढ़ा रहे हैं. ठीक उसी समय हमारे देश की सीमा की रक्षा कर रहे जाबांज़ सैनिक ख़ून जमा देने वाली ठंड और चमड़े जला देने वाली गर्मी में हमारी सुरक्षा हेतु तैनात हैं. हम अपनी आरामदेह बिस्तरों में धंस कर जिस लोकतंत्र की दुहाई देते नहीं थकते, वो लोकतंत्र हमारी सेना की बदौलत ही महफूज़ है. और इसी क्रम में हमारे देश के कितने ही सैनिकों ने उनकी जानें कुर्बान कर दीं.
भारतीय सेना उनके ही जाबांज़ सैनिकों के विशिष्ट शौर्य प्रदर्शन पर उन्हें “परम वीर चक्र” नामक सम्मान से नवाज़ती है. परम वीर चक्र भारतीय सेना के सैनिकों को दिया जाने वाला सर्वोच्च शौर्य सम्मान है. तो हम यहां ख़ास ग़ज़बपोस्ट के पाठकों के लिए लेकर आए हैं, देश पर कुर्बान हुए 10 वीरों की वीर गाथाएं, जिन्हें परम वीर चक्र से भी सम्मानित किया गया.
विशेष नोट:- अभी कल की तारीख यानि 9 सितंबर को कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्मदिन था, तो वहीं 10 सितंबर को  वीर अब्दुल हमीद का शहादत दिवस है. उनके शहादत के पचास वर्ष पूरे हुए है.

1. मेजर सोमनाथ शर्मा

मेजर सोमनाथ शर्मा को सन् 1947 के नवंबर माह में उनकी बहादुरी के लिए सर्वोच्च मेडल से नवाज़ा गया था. उनके दाहिने हाथ में प्लास्टर चढ़े होने के बावजूद उन्होंने तय किया कि वे उनके साथियों के साथ ही जियेंगे-मरेंगे. 
वे जब दुश्मन से लड़ने में व्यस्त थे तभी उनके नज़दीक रखे गोले-बारूद पर मोर्टार बम गिर कर फट गया. उन्होंने उनकी मौत से चंद मिनट पहले एक संदेश ब्रिगेड हेडक्वार्टर भेजा था. इसमें वे कहते हैं, “दुश्मन हमसे सिर्फ़ 50 गज़ की दूरी पर है. दुश्मन हमारी तुलना में काफ़ी अधिक है. हम आग की लपटों में बुरी तरह फंसे हुए हैं. लेकिन हम यहां से एक इंच भी पीछे नहीं हटने वाले और गोलियों के अंतिम राउंड तक लड़ेंगे”.
इस जाबांज़ सैनिक ने उसके जान को देश पर न्योछावर कर दिया, मगर उसने श्रीनगर और कश्मीर घाटी को पाकिस्तान में जाने से बचा लिया.

2. कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया

बेल्जियम के कांगो छोड़ने के बाद कांगो में शीत-युद्ध जैसी स्थितियां उत्पन्न होने लगीं. संयुक्त राष्ट्र ने इस परिस्थिति को संभालने हेतु दखलंदाज़ी और भारत की मदद लेने का फैसला लिया. भारत ने इस संयुक्त राष्ट्र के इस अभियान हेतु लगभग 3000 जवानों को वहां भेजा. 
कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया सन् 1957 में 1 गोरखा राइफल्स में कमीशन्ड हुए थे. कैप्टन सलारिया के ऐक्शन के दम पर उनकी सैन्य टुकड़ी कटांगी लड़ाकों को संयुक्त राष्ट्र के एलिजाबेथविले में स्थित केन्द्र को कब्जे में लेने से रोक पायी थी. उनकी अगुआई में उनकी टुकड़ी बड़ी ही बहादुरी से लड़ी. इस पूरे क्रम में उन्हें उनके जान की कुर्बानी देनी पड़ी. उनके इस अदम्य साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया.

3. मेजर धन सिंह थापा

मेजर थापा सन् 1949 में इंडियन आर्मी के 8 गोरखा राइफल्स में कमीशन्ड हुए थे.
पैंगांग झील, लद्दाख के उत्तरी हिस्से में स्थित सिरिजाप घाटी को चुसुल एयरफील्ड के रक्षा हेतु एक महत्वपूर्ण केन्द्र माना जाता था. गोरखा राइफल्स की टुकड़ियां यहां दुश्मनों के आक्रमण को कुंद करने के लिए तैनात की गई थीं. इसके एक पोस्ट के सुरक्षा की जिम्मेदारी मेजर थापा के जिम्मे थी. सन् 1962 में जब चीनी सैनिकों ने इस पोस्ट पर धावा बोल दिया, तो मेजर थापा की अगुआई में लड़ रही भारतीय सेना ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया. हालांकि इस पूरी कार्रवाई के दौरान मेजर थापा उनकी जान गंवा बैठे और उन्हें मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया.

4. वीर अब्दुल हमीद

अब्दुल हमीद को हमारी पूरी पीढ़ी इसी उपनाम से जानती और पुकारती है. हिन्द-पाक के बीच चले 65 के युद्ध के वे हीरो थे. 
कहते हैं कि दुश्मनों की टैंकों ने भारतीय सेना को बहुत परेशान कर रखा था. वीर अब्दुल हामिद उनसे बिना किसी टैंक के ही भीड़ गए और दो टैंकों को धराशायी कर दिया. उनके इस प्रहार से दुश्मन बौखला गया और उन पर मशीन गन और भारी गोला बारूद से हमला कर दिया. वे बुरी तरह घायल थे और ख़ून से लथपथ थे, मगर उन्होंने उनके जान की बिल्कुल परवाह नहीं की और लगातार दुश्मनों पर हमला करते रहे. उनकी इस बहादुरी के लिए भारत माता के इस सच्चे सपूत को मरणोपरांत परम वीर चक्र से नवाज़ा गया.
यह वीर अब्दुल हमीद द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली जीप है...

5. फ्लाइंग अफ़सर निर्मल जीत सिंह सेखो

सन् 1971 के ऑपरेशन के दौरान फ्लाइंग अफ़सर निर्मल जीत सिंह सेखो 18 नंबर के फ्लाइंग बुलेट्स स्क्वाड्रन के साथ श्रीनगर में ड्यूटी पर थे. वे उन दिनों Folland Gnat fighter से उड़ान भरा करते थे, और दुश्मनों के एयरक्राफ्ट्स और ठिकानों को तबाह किया करते थे. 
श्रीनगर एयरफील्ड पर दुश्मनों के सबसे मारक सबरे एयरक्राफ्टों ने हमला कर दिया था. सेखो ने ठीक उसी समय उड़ान भरी और दो सबरे एयरक्राफ्टों को ख़ुद में उलझा लिया. वे दुश्मनों के दो लड़ाकू विमानों को धराशायी करने में सफल रहे, मगर इन सभी के बीच उनका एयरक्राफ्ट भी तबाह हो गया और भारत मां ने अपना एक लाल खो दिया. उन्हें इस वीरता और पराक्रम हेतु परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया.

6. मेजर रामास्वामी परमेश्वरन्

सन् 1987 के नवंबर में भारत से कई सैन्य टुकड़ियों को भारत-श्रीलंका समझौते के तहत श्रीलंक में कानून व्यवस्था के निगरानी हेतु भेजा गया था. इसी क्रम में मेजर परमेश्वरन् और उनकी टुकड़ी को वहां के अतिवादियों ने चारो तरफ से घेर लिया था. मगर ठीक उसी समय असाधारण धैर्य और तीक्ष्ण बुद्धि के दम पर उन्हें पीछे से घेर लिया.
इसके बाद वे एक विद्रोही से एक के मुकाबले एक की मुद्रा में भिड़ पड़े, मगर इसी दौरान उनके सीने पर कहीं से एक गोली लग गई. मगर वे इससे भी विचलित नहीं हुए और उनका ही राइफल छीन कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया. गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद वे उनकी अंतिम सांस तक लड़ते रहे और उनके साथी सैनिकों के लिए प्रेरणा बने रहे.

7. कैप्टन मनोज कुमार पांडे

कैप्टन मनोज सन् 1999 के ऑपरेशन विजय में प्लाटून कमांडर थे, जो बटालिक सेक्टर के खालूबार की ओर बढ़ रही थी. उनके बटालियन के इस पूरी बढ़त पर दुश्मनों ने बुरी तरह रोक रखा था, जो कि उनसे ऊपर की पहाड़ियों पर पोजीशन लेकर आश्वस्त थे. उनके ऊपर जबर टॉप को फिर से भारत के अधिकार में लाने की चुनौती थी.
कंधे और टांग में बुरी तरह चोटिल होने के बावजूद, वे उनकी सैन्य टुकड़ी को लगातार प्रेरित कर रहे थे. बुरी तरह घायल होने और ख़ून के रिसाव के कारण भारत माता का यह सपूत देश पर कुर्बान हो गया. मगर उनकी शहादत बेकार नहीं गई और भारत ने इस युद्ध में दुश्मनों को बुरी तरह तबाह कर दिया. उनके अंतिम शब्द “ना छोड़ना” आज भी भारतीय सेना के लिए प्रेरणा और दुश्मनों के लिए खौफ़ का पर्याय हैं.
यहां कैप्टन मनोज कुमार पांडे (वृत्त) में को दूसरे जवानों और अफ़सरों के साथ देखा जा सकता है.

8. ग्रेनेडियर योगेन्दर सिंह यादव

ग्रेनेडियर योगेन्दर को सन् 1999 के कारगिल युद्ध में अभूतपूर्व वीरता के प्रदर्शन हेतु सम्मानित किया गया था. वे घातक प्लाटून का हिस्सा थे, जिन्हें टाइगर हिल पर फिर से कब्जे की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी गई थी. किसी भी प्रकार के खतरे से बेपरवाह ग्रेनेडियर योगेन्दर ने इस खड़ा चढ़ाई पर जीत हेतु उन्होंने वहां तक रस्सी के सहारे जाने का फैसला लिया.
उनके इस बढ़ते कदम को देख कर दुश्मनों ने ग्रेनेड, रॉकेट और गोले-बारूद से हमला कर दिया. इसमें कमांडर और उनके दो साथियों की मौत हो गई. परिस्थिति की गंभीरता को देखते हुए ग्रेनेडियर योगेंदर रेंगते हुए आगे बढ़ते रहे और इस क्रम में उन्हें कई गोलियां भी लगीं. उनके इस साहस ने पूरी सैन्य टुकड़ी में ऊर्जा का संचार कर दिया और भारतीय सेना टाइगर हिल टॉप पर कब्ज़ा करने में सफल रही. उनके इस अदम्य साहस और जिजीविषा हेतु उन्हें परम वीर चक्र से नवाज़ा गया.

9. राइफलमैन संजय कुमार

राइफलमैन संजय कुमार उन दिनों जम्मू कश्मीर राइफल्स के साथ पोस्टिंग पर थे और उन्हें 4875 प्वाइंट के फ्लैट टॉप एरिया पर कब्ज़े की ज़िम्मेदारी दी गई थी. यह इलाका मुश्कोह घाटी का हिस्सा था और इस पर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा था. वे उनकी जान की परवाह किए बगैर रेंगते हुए दुश्मनों के बंकर तक पहुंच गए.
गोलियां लगने की वजह से उनके शरीर से बुरी तरह ख़ून बह रहा था. वहां से उन्होंने दुश्मन के ही बंदूकों से तीन और दुश्मनों को मार गिराया. उनके इस अदम्य साहस के लिए उन्हें परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया.

10. कैप्टन विक्रम बत्रा

कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी 13 जम्मू कश्मीर राइफल्स को प्वाइंट 5140 पर फिर से कब्ज़ा करने की ज़िम्मेदारी दी गई थी. उन्होंने बहुत नज़दीक से हमला करके तीन दुश्मनों को मार गिराया था और इस क्रम में वे बुरी तरह घायल भी हो गए थे. हालांकि उनके चोटों से बेपरवाह वे लगातार लड़ते रहे.
हमारी फिल्मों में और कोकाकोला शीतल पेय के फेमस स्लोगन “ये दिल मांगे मोर” को भी इसी जाबांज़ अफ़सर ने कालजयी बना दिया, जिसे सुन कर दुश्मनों की रूह कांप उठती थी. उनके इस शौर्य और पराक्रम हेतु उन्हें परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया.
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(बांए से दांए) कैप्टन विक्रम बत्रा, मेजर विकास वोहरा, मेजर राजेश डब्ल्यू अधाउ और लेफ्टिनेंट कर्नल वाई.के जोशी

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