Saturday 19 September 2015

20 ऐसे वाहन जो इंडियन आर्मी की आन-बान-शान हैं


 20 ऐसे वाहन जो इंडियन आर्मी की आन-बान-शान हैं
इंडियन आर्मी द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले वाहन आधुनिक टेक्नोलॉजी से पूरी तरह लैस होते हैं. उन्हें कुछ इस कदर डिजाइन किया गया होता है कि वे इंडियन आर्मी की पूरी मदद कर सकें. तो यहां पेश हैं वे 20 वाहन जिनके साथ इंडियन आर्मी का पुराना और दिली नाता है.

1. अर्जुन एम.बी.टी.:

इन्हें कॉम्बेट वेहिकल्स रीसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट (CRVDE) द्वारा डिजाइन किया गया है. अर्जुन एम.बी.टी इंडिया का मुख्य सामरिक टैंक है.

ओरिजिन: इंडिया

2. T-90S “भीष्म” और T-90M:

जो 125 मि.मी. 2A46 स्मूथबोर टैंक गन से लैस होते हैं. T-90 का ऑपरेशनल रेंज 700कि.मी. होता है.

ओरिजिन: सोवियत यूनियन

3. T-72 अजेय:

अजेय का निर्माण अवदी हैवी इंजीनियरिंग प्लांट में किया जाता है. बड़ी संख्यां में टैंको का नवीनीकरण किया गया है, इस बख़्तरबंद वाहन को DRDO explosive reactive armour से लैस किया गया है, साथ ही इसमें कई और आधुनिक फीचर्स मौजूद हैं.

ओरिजिन: सोवियत यूनियन

4. BMP-2 “सरथ”:

इसका निर्माण और्डनेंस फैक्टरी मेडक में किया जाता है. अभी देश भर में 900 से अधिक BMP-2 यूनिट्स सेवारत हैं.

ओरिजिन: सोवियत यूनियन

5. BTR-50:

यह एक ऐसा बख़्तरबंद युद्धक है, जिसे जल और थल दोनो जगह किया जा सकता है. साथ ही इसका इस्तेमाल पैदल सेना को युद्ध के मैदान तक लाने के लिए भी किया जाता है.

ओरिजिन: सोवियत यूनियन

6. NAMICA:

NAMICA या नाग मिसाइल कैरियर टैंक को ध्वस्त करने वाला युद्धक है. यह 12 मिसाइल एक साथ ढो सकता है, जिसमें 8 हमेशा ही फायर के लिए तैयार रहते हैं.

ओरिजिन: भारत

7. CMT:

करियर मोर्टर ट्रैक्ड एक स्वसंचालित मोर्टर सिस्टम है. इसे Combat Vehicles Research and Development Establishment ने निर्मित किया है. यह युद्धक अपने साथ 108 राउंड मोर्टर लेकर चलता है, साथ ही यह जल-थल दोनो जगह काम करने में सक्षम है.

ओरिजिन: भारत

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8. TOPAS 2-A:

अपने शुरुआती दिनों में यह जल और थल पर लड़ने वाला बख़्तरबंद युद्धक था, जिसका इस्तेमाल जवानों को ढोने के लिए किया जाता था, मगर बाद में इसे टेक्निकल सपोर्ट वेहिकल में तब्दील कर दिया गया.

ओरिजिन: चेकोस्लाविया और पोलैंड

9. बख़्तरबंद DRDO ऐम्बुलेन्स:

इसे DRDO ने निर्मित किया है, मेडिकल सेवा देने की सारी सुविधाएं इसके भीतर मौजूद हैं.

ओरिजिन: भारत

10. NBC Reconnaissance Vehicle:

DRDO और VRDE द्वारा निर्मित यह युद्धक गाड़ी न्यूक्लियर, बायोलॉजिकल और केमिकल सम्पर्कविकार का पता लगा लेता है.

ओरिजिन: जापान

11. PRP-3:

किसी स्थान का सैन्य सर्वेक्षण करने वाली यह तोपें इंडियन आर्मी द्वारा ज़मीनी लड़ाई में इस्तेमाल की जाने वाली सबसे अच्छी तोपें हैं.

ओरिजिन: सोवियत यूनियन

12. Casspir:

Casspir लैंडमाइन निरोधी वाहन है. इसका इस्तेमाल ट्रूप्स को इधर-उधर ले जाने के लिए किया जाता है. अभी इंडियन आर्मी ऐसे 90 वाहनों का इस्तेमाल कर रही है.

ओरिजिन: दक्षिण अफ़्रीका

13. Tarmour AFV:

The Tarmour AFV पुराने T55 inventories को विश्वस्तरीय AFV में बदलने की कवायद है. जिसमें सुरंगीय बेलन और हल लगे होते हैं.साथ ही इसमें इजराइल के डिजाइन्स से भी प्रेरणा ली गई हैं.

ओरिजिन: भारत

14. Hydrema:

यह वाहन सुरंग को हटाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, यह लगभग 3.5 मीटर चौड़ाई की सुरंगें तक हटा सकता है. 

ओरिजिन: डेनमार्क

15. Aditya MVP:

इस वाहन को DRDO द्वारा निर्माण किया गया है. यह वाहन आतंकवाद निरोधक गतिविधियों में ख़ास तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.

ओरिजिन: भारत

16. DRDO दक्ष:

यह बैटरी से चलने वाला और रिमोट से संचालित होने वाला रोबोट है. इसका मुख्य काम बम खोजना और उन्हें निष्क्रिय करना है.

ओरिजिन: भारत

17. ABL कार्तिक:

CVRDE और Research and Development Establishment द्वारा निर्मित यह वाहन विजयन्ता चेसिस पर स्थापित है, जो हैवी वेहिकल्स फैक्टरी द्वारा मैन्यूफैक्चर किया जाता है.

ओरिजिन: भारत

18. MT-55 पुल बिछाने वाला टैंक:

MT-55 एक बख़्तरबंद गाड़ी है. इस पुल निर्माण करने वाले टैंक के तौर पर जाना जाता है.

ओरिजिन: सोवियत यूनियन

19. सर्वत्र:

DRDO द्वारा निर्मित यह वाहन चलता-फिरता पुल है. इसके पुल बनाने की क्षमता 75 मीटर तक की है. 

ओरिजिन: भारत

20. T-72 BLT:

यह वाहन CVRDE द्वारा विकसित और हैवी वेहिकल्स फैक्टरी द्वारा निर्मित किया गया है. इंडियन आर्मी के पास ऐसे 12 वाहन हैं.

ओरिजन: भारत



“इंडियन आर्मी” बहादुरी की सच्ची मिसाल है. ये 20 बातें इसका प्रमाण हैं


“इंडियन आर्मी” बहादुरी की सच्ची मिसाल है. ये 20 बातें इसका प्रमाण हैं

  • इंडियन आर्मी इंडियन आर्म्ड फोर्सेज़ की थल इकाई है. इंडियन आर्मी का नियंत्रण एवं संचालन का कार्य भारतीय रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत है. इंडियन आर्मी विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है. इंडियन आर्मी की स्थापना सन् 1947 में इंडिया को आज़ादी मिलने के तुरंत बाद हुई थी, जिसमें ब्रिटिश राज के समय की अधिकतर रेजीमेंटों को यथावत रख दिया गया था. ये तो हुई इतिहास और आकड़ों की बातें. अब कुछ बातें धरातल पर कि जिस समय हम घरों में बैठे होते हैं और बिजली की कटौती पर सरकार को कोसते हैं या फिर गर्मी के लिये किस्मत को, उस समय हमारे फौजी देश की सीमा पर हाड़ कंपा देने वाली ठंड या गर्मी को झेलते हुए हमारी सुरक्षा का जिम्मा अपने कंधों पर लिए मुस्तैद रहते हैं वो भी बिना किसी को कोसे हुए. और इसलिए ही तो इंडियन आर्मी का जिक्र आते ही हमारा सिर हमेशा उनके सम्मान में झुक जाता है. और बरबस ही जुबान से “जय जवान जय किसान” का नारा निकल जाता है.

    1. दया...

    2. रोमांच...

    3. कुर्बानी...

    4. मज़ाक...

    5. हक़...

    6. आदेश...

    7. मिलन...

    8. गोरखा...

    9. तिरंगा...

    10. सम्मान...

    11. उद्देश्य...

    12. निराशा...

    13. असंभव...

    14. दिल...

    15. जीवनशैली...

    16. बंदूक...

    17. पेशा...

    18. सितारे...

    19. मोहब्बत...

    20. दुल्हन...

    अंत में सिर्फ़ कहने को इतना ही है कि जय हिंद...जय हिंद की सेना!!!

इंडिया की 8 स्पेशल फोर्सेस और उनकी यूनिफॉर्म जो उन्हें सामान्य से विशेष बनाती हैं


इंडिया की 8 स्पेशल फोर्सेस और उनकी यूनिफॉर्म जो उन्हें सामान्य से विशेष बनाती हैं

  • 1. इंडियन आर्मी

    इंडियन आर्मी में बतौर कमांडो प्रशिक्षित सैनिक दुश्मनों को छलने के लिए छलावा ड्रेस का इस्तेमाल करते हैं. इन सभी ड्रेसों को रेगिस्तान में हल्का रंग और हरियाली के बीच गाढ़े रंग उन्हें वातावरण से घुलने-मिलने में मदद करता है. कमांडो एक विशेष प्रकार की झिल्लीदार सूट भी पहनते हैं, जिन्हें किसी भी प्रकार के वातावरण में छिपने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है. स्पेशल फोर्स पर्पल बैरेट पहनते हैं और इनके पास रहने वाले इजराइली टेओर असॉल्ट राइफल्स इन्हें पारामिलिट्री फोर्सेस से अलग खड़ा करती है.

    2. गरुण कमांडो फोर्स

    इंडियन एयर फोर्स ने 2004 में अपने एयर बेस की सुरक्षा के लिए इस फोर्स की स्थापना की थी. मगर गरुण को युद्ध के दौरान शत्रु की सीमा के पीछे काम करने के लिए ट्रेन किया गया है. आर्मी फोर्सेस के इतर ये काली टोपी पहनते हैं. इसके निर्माण से लेकर अब तक इन्होंने कोई भारी लड़ाई नहीं लड़ी है और इन्हें मुख्य तौर पर माओइस्ट विरोधी मुहिम में शामिल किया जाता है.

    3. नेशनल सिक्योरिटी गार्ड

    एन.एस.जी. इस देश के सबसे अहम् आउटफिट्स में से एक है जो गृह मंत्रालय के भीतर काम करते हैं. आतंकवादियों की ओर से आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर लड़ने के लिए इन्हें विशेष तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, जैसे 26/11 मुंबई हमलों के मौके पर. इसके साथ ही वी.आई.पी. सुरक्षा, बम निरोधक और एंटी हाइजैकिंग के लिए इन्हें विशेष रूप से इस्तेमाल किया जाता है. इन स्पेशल फोर्सेस में आर्मी के लड़ाके शामिल किए जाते हैं, हालांकि दूसरे फोर्सेस से भी लोग शामिल किए जाते हैं. इनकी फुर्ती और तेज-तर्रारी की वजह से इन्हें “ब्लैक कैट” भी कहा जाता है.

    4. सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स

    सी.आई.एस.एफ के कमांडोज़ को वी.वी.आई.पी, एयरपोर्ट और इंडस्ट्रियल संयत्रों के लिए विशेष तौर पर तैनात किया जाता है. बड़े और अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट्स जैसे दिल्ली और मुंबई इन्हीं की निगरानी में सुरक्षित रहते हैं.
    मुंबई के 26/11 हमलों के बाद इनकी इस्तेमाल प्राइवेट सेक्टर की सिक्योरिटी के लिए भी होने लगा है. इन फोर्सेस का स्पेशल फायर विंग भी है, इसके साथ ही वे दिल्ली मेट्रो की सुरक्षा में भी विशेष तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं.

    5. स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप

    एस.पी.जी. को प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए विशेष तौर पर तैनात किया जाता है. हालांकि वे अपनी ट्रेडमार्का सफारी सूट में पाये जाते हैं, मगर विशेष मौकों पर एस.पी.जी. कमांडोज़ को बंदूकों के साथ काली ड्रेस में भी देखा जाता है.
    प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1985 में इन्हें स्थापित किया गया, जिसके बाद वे पूर्व प्रधानमंत्री और उनके परिवार को ये सुरक्षा प्रदान करते हैं.

    6. इंडो तिब्बत बॉर्डर पुलिस

    आई.टी.बी.पी. के कमांडोज़ ने मुंबई में हुए 26/11 आतंकी वारदात के बाद उसके मुख्य अभियुक्त अजमल कसाब को मुंबई जेल में रखने में अहम भूमिका अदा की थी. दिल्ली के कुख्यात तिहाड़ जेल की निगरानी की कमान भी इन्हीं के हाथों में होती है. और इसके साथ ही ये भारत-चीन सीमा की भी विशेष निगरानी करते हैं.

    7. सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स

    सी.आर.पी.एफ. की कमांडो फोर्स कोबरा COBRA कमांडो बटालियन फॉर रिज्योल्यूट ऐक्शन, नक्सल समस्या से लड़ने के लिए स्पेशली बनी है. ये दुनिया के बेस्ट पारामिलिट्री फोर्सेस में से एक हैं, जिन्हें विशेष गोरिल्ला ट्रेनिंग दी गई है. राष्ट्रपति भवन की सुरक्षा के लिए भी वे तैनात किए जाते हैं, साथ ही भविष्य में संसद भवन की सुरक्षा में भी उनकी तैनाती होगी.

    8. मार्कोस

    भारतीय नेवी द्वारा सुरक्षा के लिए गठित किया गया विशेष दस्ता जिन्हें आम नज़रों से बचा कर रखा गया है. मार्कोस को जल, थल और नभ में लड़ने के लिए विशेष तौर पर तैयार किया गया है, हालांकि जलीय मिशन में इनकी महारत है. इधर हाल ही में उन्हें अमरीकी मरीन जैसे ड्रेस में देखा गया है. इनके अधिकारियों का कहना है कि वे अभी फ़ाइनल ड्रेस को लेकर एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं. 26/11 में ताज पर हुए हमलों में आतंकवादियों से निपटने में इनकी विशेष भूमिका थी.

मार्कंडेय काटजू ने नेताजी को जापानी एजेंट कहा. हवाई दुर्घटना में नहीं मरे थे बोस


मार्कंडेय काटजू ने नेताजी को जापानी एजेंट कहा. हवाई दुर्घटना में नहीं मरे थे बोस

  • आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ हुई उस तथाकथित घटना को 70 वर्ष हो चुके हैं, मगर उनके मौत और ज़िंदगी से जुड़े विवाद रुकने का नाम ही नहीं लेते. हालांकि अब उनकी ज़िंदगी से जुड़े 64 पत्र-पपत्रों को 18 सितंबर (शुक्रवार) को गुप्त सूची से बाहर कर दिया जाएगा. यहां कुछ फाइलों को सीएनएन आईबीएन और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश के हवाले से जनता हेतु आम कर दिया गया है. आप भी देखें...

    क्या नेताजी जापान के भेदिया थे?

    सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू उनके विवादास्पद बयानों के लिए कुख्यात हैं. इधर हाल ही में उनका एक वक्तव्य आया है कि नेताजी वास्तविकता में ‘जापानी एजेंट’ थे. अब यह तो गंभीर आरोप है. काटजू इससे पहले रवीन्द्र नाथ टैगोर को भी अंग्रेजों का पिट्ठू कह चुके हैं.
    काटजू कहते हैं कि, “ मेरी राय के अनुसार बोस एक अति महत्वाकांक्षी व्यक्ति थे, और वे जापन के एजेंट बन गए क्योंकि गांधी और हिटलर ने उन्हें कोई ‘भाव’ नहीं दिया”.
    काटजू कहते हैं कि, वे जल्द ही कोलकाता के किसी विश्वविद्यालय या संस्थान में भाषण देने आने वाले हैं, वे वहां अंग्रेजों के पिट्ठू - टैगोर और जापानी एजेंट – बोस पर करारा प्रहार करने वाले हैं. वे कहते हैं कि ऐसा करना किसी मधुमक्खी के छत्ते में पत्थर मारने जैसा होगा और इससे पूरा बंगाली समुदाय उनके ख़ून का प्यासा हो जाएगा. मगर उन्हें सच जानना चाहिए. अब तक वे बहुत गफलत में रहे हैं.
    यहां प्राप्त दस्तावेज़ से यह जाहिर होता है कि ताइपेइ (अब ताइवान) में हुए 1945 के हवाई दुर्घटना में उनके मौत की कोई पुष्टि नहीं हुई है.
    इन सारे दस्तावेज़ों को ‘ऑफिसियल सिक्रेट्स ऐक्ट’ के तहत दबा कर रखा गया था, मगर अब इन्हें सीएनएन आईबीएन द्वारा प्राप्त कर लिया गया है. सन् 1949 में नेताजी के परिवार द्वार सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को लिखे एक पत्र में ऐसा कहते देखा जा सकता है कि नेताजी जीवित हैं. ये फाइलें इस बात का खुलासा करती है कि भारत की खूफिया एजेंसियां इस बात को जानती थीं कि वे जीवित हैं और अमेरिका और इंग्लैंड की खूफ़िया एजेंसियों के पास ऐसा कोई सबूत नहीं था कि नेताजी हवाई दुर्घटना का शिकार हुए थे.
    सन् 1949 में अमेरिका और इंग्लैंड का ऐसा मानना था कि रूस नेताजी को अगला माओ या टिटो बनने की ट्रेनिंग दे रहा था.
    उनका ऐसा मानना था कि वे भारत लौटने हेतु उचित समय का इंतज़ार कर रहे थे. उनके गायब होने के 4 वर्षों बाद तक वे दक्षिण-पूर्वी एशिया में साम्यवादी उभार के पीछे की वजह माने जाते रहे थे.
    उनकी मौत को सच मुख्य रूप से एक व्यक्ति के वक्तव्य हवाले से माना जाता है. जनरल हबीब-उर-रहमान जो कि उनके पर्सनल स्टाफ के मुखिया थे.
    वे बताते हैं कि हवाई दुर्घटना के समय वे नेताजी के ही साथ थे. उन्होंने एक अस्पष्ट पत्रक उन्हें दिया. लेकिन बाद में जब उन्होंने कश्मीर में पाकिस्तानी रेडर्स को ज्वाइन किया तब कहा कि ‘नेताजी’ जीवित हैं और ज़रूर लौंटेगें.
    नेताजी के परिवार की खूफ़िया एजेंसियां जासूसी कर रही थीं.
    5 मार्च, सन् 1948 को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अफ़सर श्री कुआंग द्वारा नेताजी के भतीजे अमिया नाथ बोस को एक पत्र लिखा गया था, मगर पत्र उन तक पहुंचने से पहले ही खूफ़िया एजेंसियों के हाथ लग गया. उस पत्र में वे कहते हैं कि, “उन्हें अफ़सोस है कि उस दौरान के नानकिंग (चीन) से निकलने वाले अख़बारों में नेताजी के मौत की ख़बर नहीं पढ़ सके. वे अभी भी मानते हैं कि नेताजी जीवित हैं.”
    Source: hindivichar
    नेताजी के परभतीजे का कहना है कि उनके पिताजी की भी इग्लैंड ने जासूसी करवायी थी.
    वे कहते हैं कि सिर्फ़ इतना ही नहीं बल्कि इंडोलॉजी (भारतीय इतिहास के अध्ययन) हाइडलबर्ग यूनिवर्सिटी में भारत-जर्मनी संबंधों पर बात-बहस हो रही थी. मगर नेताजी को इस बात-बहस से बाहर रखा गया था. चूंकि नेताजी कभी भारत-जर्मनी संबंधों की धुरी हुआ करते थे. इस्टिट्यूट पर मौजूद लोगों ने कहा कि यदि वे उन्हें शामिल करते हैं तो उन्हें भारत का वीज़ा नहीं मिलेगा. सूर्या बोस सारे दस्तावेज़ों के गुप्त सूची से बाहर करने हेतु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी मिल चुके हैं.
    नेताजी भारत की आज़ादी के संघर्ष के दौरान प्रमुख नेता थे, मगर सरकार ने टोक्यो से उनके अवशेषों को लाने की कोई कोशिश नहीं की.
    उनके सारे अवशेष व स्मृति रेंकोजी मंदिर में पड़े हैं, मगर उन्हें देश लाने की कोई कोशिश नहीं की गई. हालांकि भारत सरकार ने हवाई दुर्घटना में उनके मौत की पुष्टि की है, तो फिर उनकी राख को भारत क्यों नहीं लाया गया?
    “हमारे अंदर आज एक ही चाह होनी चाहिए...देश के लिए कुर्बान होने की चाह.”- सुभाष चंद्र बोस
    भारत तो आज एक आज़ाद देश है, मगर इस पर कुर्बानी देने वालों की कोई कद्र नहीं है.
    हमारा ऐसा मानना है कि गुप्त सूचनाओं को सार्वजनिक करने से काफ़ी कुछ साफ होगा. और काटजू साब को भी अब जरा संभल के बोलना पड़ेगा. आख़िर भारत की भोली लगने वाली जनता सभी से हिसाब करने का माद्दा रखती है, है कि नहीं?