Saturday 19 September 2015

मार्कंडेय काटजू ने नेताजी को जापानी एजेंट कहा. हवाई दुर्घटना में नहीं मरे थे बोस


मार्कंडेय काटजू ने नेताजी को जापानी एजेंट कहा. हवाई दुर्घटना में नहीं मरे थे बोस

  • आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ हुई उस तथाकथित घटना को 70 वर्ष हो चुके हैं, मगर उनके मौत और ज़िंदगी से जुड़े विवाद रुकने का नाम ही नहीं लेते. हालांकि अब उनकी ज़िंदगी से जुड़े 64 पत्र-पपत्रों को 18 सितंबर (शुक्रवार) को गुप्त सूची से बाहर कर दिया जाएगा. यहां कुछ फाइलों को सीएनएन आईबीएन और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश के हवाले से जनता हेतु आम कर दिया गया है. आप भी देखें...

    क्या नेताजी जापान के भेदिया थे?

    सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू उनके विवादास्पद बयानों के लिए कुख्यात हैं. इधर हाल ही में उनका एक वक्तव्य आया है कि नेताजी वास्तविकता में ‘जापानी एजेंट’ थे. अब यह तो गंभीर आरोप है. काटजू इससे पहले रवीन्द्र नाथ टैगोर को भी अंग्रेजों का पिट्ठू कह चुके हैं.
    काटजू कहते हैं कि, “ मेरी राय के अनुसार बोस एक अति महत्वाकांक्षी व्यक्ति थे, और वे जापन के एजेंट बन गए क्योंकि गांधी और हिटलर ने उन्हें कोई ‘भाव’ नहीं दिया”.
    काटजू कहते हैं कि, वे जल्द ही कोलकाता के किसी विश्वविद्यालय या संस्थान में भाषण देने आने वाले हैं, वे वहां अंग्रेजों के पिट्ठू - टैगोर और जापानी एजेंट – बोस पर करारा प्रहार करने वाले हैं. वे कहते हैं कि ऐसा करना किसी मधुमक्खी के छत्ते में पत्थर मारने जैसा होगा और इससे पूरा बंगाली समुदाय उनके ख़ून का प्यासा हो जाएगा. मगर उन्हें सच जानना चाहिए. अब तक वे बहुत गफलत में रहे हैं.
    यहां प्राप्त दस्तावेज़ से यह जाहिर होता है कि ताइपेइ (अब ताइवान) में हुए 1945 के हवाई दुर्घटना में उनके मौत की कोई पुष्टि नहीं हुई है.
    इन सारे दस्तावेज़ों को ‘ऑफिसियल सिक्रेट्स ऐक्ट’ के तहत दबा कर रखा गया था, मगर अब इन्हें सीएनएन आईबीएन द्वारा प्राप्त कर लिया गया है. सन् 1949 में नेताजी के परिवार द्वार सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को लिखे एक पत्र में ऐसा कहते देखा जा सकता है कि नेताजी जीवित हैं. ये फाइलें इस बात का खुलासा करती है कि भारत की खूफिया एजेंसियां इस बात को जानती थीं कि वे जीवित हैं और अमेरिका और इंग्लैंड की खूफ़िया एजेंसियों के पास ऐसा कोई सबूत नहीं था कि नेताजी हवाई दुर्घटना का शिकार हुए थे.
    सन् 1949 में अमेरिका और इंग्लैंड का ऐसा मानना था कि रूस नेताजी को अगला माओ या टिटो बनने की ट्रेनिंग दे रहा था.
    उनका ऐसा मानना था कि वे भारत लौटने हेतु उचित समय का इंतज़ार कर रहे थे. उनके गायब होने के 4 वर्षों बाद तक वे दक्षिण-पूर्वी एशिया में साम्यवादी उभार के पीछे की वजह माने जाते रहे थे.
    उनकी मौत को सच मुख्य रूप से एक व्यक्ति के वक्तव्य हवाले से माना जाता है. जनरल हबीब-उर-रहमान जो कि उनके पर्सनल स्टाफ के मुखिया थे.
    वे बताते हैं कि हवाई दुर्घटना के समय वे नेताजी के ही साथ थे. उन्होंने एक अस्पष्ट पत्रक उन्हें दिया. लेकिन बाद में जब उन्होंने कश्मीर में पाकिस्तानी रेडर्स को ज्वाइन किया तब कहा कि ‘नेताजी’ जीवित हैं और ज़रूर लौंटेगें.
    नेताजी के परिवार की खूफ़िया एजेंसियां जासूसी कर रही थीं.
    5 मार्च, सन् 1948 को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अफ़सर श्री कुआंग द्वारा नेताजी के भतीजे अमिया नाथ बोस को एक पत्र लिखा गया था, मगर पत्र उन तक पहुंचने से पहले ही खूफ़िया एजेंसियों के हाथ लग गया. उस पत्र में वे कहते हैं कि, “उन्हें अफ़सोस है कि उस दौरान के नानकिंग (चीन) से निकलने वाले अख़बारों में नेताजी के मौत की ख़बर नहीं पढ़ सके. वे अभी भी मानते हैं कि नेताजी जीवित हैं.”
    Source: hindivichar
    नेताजी के परभतीजे का कहना है कि उनके पिताजी की भी इग्लैंड ने जासूसी करवायी थी.
    वे कहते हैं कि सिर्फ़ इतना ही नहीं बल्कि इंडोलॉजी (भारतीय इतिहास के अध्ययन) हाइडलबर्ग यूनिवर्सिटी में भारत-जर्मनी संबंधों पर बात-बहस हो रही थी. मगर नेताजी को इस बात-बहस से बाहर रखा गया था. चूंकि नेताजी कभी भारत-जर्मनी संबंधों की धुरी हुआ करते थे. इस्टिट्यूट पर मौजूद लोगों ने कहा कि यदि वे उन्हें शामिल करते हैं तो उन्हें भारत का वीज़ा नहीं मिलेगा. सूर्या बोस सारे दस्तावेज़ों के गुप्त सूची से बाहर करने हेतु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी मिल चुके हैं.
    नेताजी भारत की आज़ादी के संघर्ष के दौरान प्रमुख नेता थे, मगर सरकार ने टोक्यो से उनके अवशेषों को लाने की कोई कोशिश नहीं की.
    उनके सारे अवशेष व स्मृति रेंकोजी मंदिर में पड़े हैं, मगर उन्हें देश लाने की कोई कोशिश नहीं की गई. हालांकि भारत सरकार ने हवाई दुर्घटना में उनके मौत की पुष्टि की है, तो फिर उनकी राख को भारत क्यों नहीं लाया गया?
    “हमारे अंदर आज एक ही चाह होनी चाहिए...देश के लिए कुर्बान होने की चाह.”- सुभाष चंद्र बोस
    भारत तो आज एक आज़ाद देश है, मगर इस पर कुर्बानी देने वालों की कोई कद्र नहीं है.
    हमारा ऐसा मानना है कि गुप्त सूचनाओं को सार्वजनिक करने से काफ़ी कुछ साफ होगा. और काटजू साब को भी अब जरा संभल के बोलना पड़ेगा. आख़िर भारत की भोली लगने वाली जनता सभी से हिसाब करने का माद्दा रखती है, है कि नहीं?

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